दिव्यांग होना किसी भी इंसान के लिए सुखदायी नहीं होता है। लेकिन हमें सबसे ज्यादा प्रेरणा दिव्यांग लोगों से ही मिलती है। कहते हैं भगवान जब कुछ छीनते हैं तो कुछ न कुछ देते हैं। इसलिए जब व्यक्ति जब अपने अंग खोता है तो भगवान उसे प्रबल इच्छा शक्ति देते हैं। इस इच्छाशक्ति के बल पर वह ऐसे काम करता है जिससे पूरी दुनिया प्रभावित होती है। आज हम ऐसे ही एक प्रेरणादायक इंसान के बारें में जानेंगे। इनका नाम है शैलेश कुमार।
शैलेश कुमार एक पैरा एथलीट हैं। वह भारत के सबसे तेज व्हीलचेयर मैराथन धावक है। शैलेश कुमार बिहार के गया जिले के रहने वाले हैं। सही सलामत पैदा होना और 18 साल के बाद कमर के नीचे का सारा हिस्सा पैरलाइज़्ड होने के बाद भारत का सबसे तेज व्हीलचेयर मैराथन धावक बनना शैलेश कुमार के एक अटल जज्बे और जूनून की एक कहानी है।
शैलेश एक राष्ट्रीय स्तर के व्हीलचेयर बास्केटबॉल खिलाड़ी भी हैं, और अकेले एक हाथ से व्हीलचेयर पर फुल मैराथन भी पूरा कर चुके हैं। मैराथन और बास्केटबॉल खिलाड़ी होने के अलावा, शैलेश चंडीगढ़ स्पाइनल रिहैबिलिटेशन सेंटर में फिजियो-कोऑर्डिनेटर और इंक्लूजन ट्रेनर के रूप में काम करते हैं। आपको बता दें कि एक मैराथन रेस की दूरी 42.2 किलोमीटर होती है।
18 साल की उम्र में हुआ स्पाइनल कॉर्ड इंजुरी
2011 में, जिस दिन उनका 12 वीं क्लास का रिजल्ट आया। उस दिन वह अपने दोस्तों के साथ फुटबॉल खेल रहे थे। उनमे से एक ने उन्हें अपने कंधे पर
उठाये हुए चल रहा था। लेकिन वह लड़खड़ा गया और शैलेश उसके कंधे से गिर गए, वह लड़का भी उनके ऊपर गिर गया। गिरने से चोट रीढ़ की हड्डी में लगी थी, जिसकी वजह से 18 साल की उम्र में शैलेश को कमर से नीचे लकवा हो गया।
अपने परिवार के 4 भाई-बहनों में वह अकेले भाई थे। उनके पर ऊपर आगे चलकर घर का खर्च उठाने की जिम्मेदारी थी। लेकिन इस घटना के बाद उनका परिवार शोक में चला गया। शैलेश बताते हैं कुछ लोग मेरी हालत देखके कहते थे कि इस अच्छा मै मर गया होता ताकि मेरे परिवार को मेरे ऊपर इतना पैसा न खर्च करना पड़ता। पूरे एक साल तक वह घर में पड़े रहे। घरवालों ने वह सबकुछ किया जो कुछ भी उनसे बन पड़ता था लेकिन फिर भी सबकुछ बेकार था।
रिहैब सेंटर में हुए शामिल
शैलेश और उनके परिवार ने आध्यात्मिक से लेकर वैज्ञानिक तरीकों तक सबकुछ आजमा लिया। लेकिन कुछ बेहतर न हो सका। इसके बाद शैलेश 'मैरी वर्गीज़ इंस्टीट्यूट ऑफ रिहैबिलिटेशन, क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर में भर्ती हुए। यहाँ उनकी मुलाकात एस वैद्यनाथन से हुई, जिन्होंने शैलेश का पूरा दृष्टिकोण बदल दिया। वैद्यनाथन स्वयं पैरापैलेगिया व्यक्ति हैं। वैद्यनाथन ने गंगा ट्रस्ट की स्थापना की, जो रीढ़ की हड्डी की चोट वाले लोगों के अनुसंधान और पुनर्वास के लिए धन जुटाता है।
इस रिहैब सेंटर में रहने के दौरान शैलेश को पैरा व्हीलचेयर मैराथन रेस के बारें में पता चला। उन्होंने 2014 में सरकार द्वारा वित्त पोषित ट्राई साइकिल पर अपने पहले पूर्ण मैराथन में भाग लिया। 2017 में, उन्होंने 2 घंटे, 20 मिनट और 16 सेकंड में चेन्नई में हाफ-मैराथन (21.1 KM) पूरा किया। एक साल बाद, वह 3 घंटे और 58 मिनट के समय के साथ व्हीलचेयर पर सबसे तेज भारतीय पैरा मैराथन धावक बन गए।
इस साल होने वाले टोक्यो पैरालिम्पिक्स में वह भाग लेने वाले थे। लेकिन अभी महामारी की वजह से लगता है कि इस साल पैराओलम्पिक नहीं हो पायेगा। 26 वर्षीय शैलेश ने अपने पहले स्पोर्ट्स व्हीलचेयर को खरीदने के लिए 4 लाख रुपए क्राउडफंडिंग करके गंगा ट्रस्ट की मदद से जुटाया।
यह भी पढ़ें: 2 ऐसे गेंदबाज़ जिन्होंने अपने करियर में उतने रन नहीं बनाये जितने ज्यादा विकेट लिए हैं
शैलेश कुमार की उपलब्धियां
व्हीलचेयर पर हाफ मैराथन पूरा किया। ट्राइसाइकिल पर फुल मैराथन पूरा किया। राष्ट्रीय स्तर पर व्हीलचेयर बास्केटबॉल खिलाड़ी हैं। व्हीलचेयर उपयोगकर्ताओं को लाभान्वित करने वाली परियोजनाओं के लिए IIT मद्रास के स्वयंसेवक भी है। पैन-इंडिया स्तर पर स्वतंत्र लिविंग स्किल ट्रेनर हैं। वह अपने गाँव में बिजली की लड़ाई में शामिल हुए। उनकी लड़ाई की वजह से उनके गाँव में बिजली आयी।