कहते हैं कि जब जज्बा हो और कुछ कर गुजरने का जूनून हो तो कोई भी चीज़ आपको सफल होने से नहीं रोक सकती है। फिर यह कमी चाहे शारीरिक हो या किसी सुविधा की, अगर किसी चीज़ के प्रति समर्पण और जूनून है तो वह चीज़ हासिल की जा सकती है। हम सभी ने देखा है कि अकसर दिव्यांग लोग पढ़ाई-लिखाई के मामलें में ऐसा कुछ कर जाते हैं जिससे आम इंसान को भी प्रेरणा मिलती है।
आज हम आपको दो ऐसी लड़कियों के बारें में बताने जा रहें हैं जो अपनी मेहनत और लगन की वजह से अपना ही नहीं अपने देश का नाम भी रोशन करने के लिए तैयार है। आपको बता दें ये दोनो लड़कियां दिव्यांग हैं। ये दोनों क्रिकेट खेलती हैं।
25 और 23 साल की गीता और ललिता का नाम पहली राष्ट्रीय विकलांग महिला क्रिकेट टीम के लिए लड़कियों के पहले ट्रेनिंग के लिए चुना गया है।
ये दोनों लड़कियां एक एक छोटे से गाँव फतेहपुर तालुका के पुकड़ा गाँव से और दाहोद के धनपुरा तालुका के दुमका गाँव से ताल्लुक रखती है।
पिछले साल नवंबर में एक ट्रेनिंग कैंप लगा था। 31 लड़कियों में से ये दो लड़कियां ट्रेनिंग के लिए चुनी गयी। दिव्यांग क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ऑफ इंडिया (DCCBI) द्वारा देश के लिए एक विकलांग महिला टीम बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
ये लड़कियां क्रिकेट अभी तक नहीं खेली है। इन्हें इस खेल में कोई पिछला अनुभव नहीं है। इन्हे ट्रेनिंग में भेजने का श्रेय इनके IIT अहमदाबाद के टीचर को जाता है।
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गीता डामोर ने कंप्यूटर में IIT कोर्स पूरा कर लिया है। था और सानंद में एक यूनिट में काम कर रही थीं। ट्रेनिंग में सही समय से पहुँच सके इसके लिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी।
गीता की तरह ललिता डामोर भी IIT की छात्रा रह चुकी हैं। लेकिन उसने ब्यूटीशियन का कोर्स बीच में ही छोड़ दिया था। 2007 में ललिता के पिता की मृत्यु हो गई जिसके बाद उनकी माँ उन्हें पाल पोस रही थी। ललित का बायां पैर पोलियो के कारण ख़राब हो चुका है।
ये दोनों लड़कियां रोज वड़ोदरा में ट्रेनिंग के लिए आती है।