कहते हैं जब हौंसला हो तो जीवन में चाहे कितनी भी मुसीबत आये सपना पूरा होने से कोई नहीं रोक सकता है। अगर आपके शरीर के सभी अंग सलामत हैं तो आप बहुत भाग्यशाली हैं। आप जो चाहे वो कर सकते हैं बस आपके अंदर वो जज्बा और जूनून होना चाहिए। ऐसा देखा गया है कुछ दिव्यांग लोग होते हैं जो अपनी प्रतिभा और जूनून की वजह से हमें प्रेरित करते हैं।
आज हम ऐसे ही एक खिलाड़ी की बात करने जा रहे हैं जिनके दोनों हाथ नहीं हैं लेकिन इन सब के बावजूद वह आज भी अपने सपने को पूरा करने में लगे हैं। यह हैं चंदीप सिंह सूदन जो एक राष्ट्रीय स्तर के स्केटर और ताइक्वांडो खिलाड़ी हैं।
आपको बता दें कि चंदीप के दोनों हाथ कंधे से कट गए हैं। वह जब 11 साल के थे तभी उन्हें 11,000 वोल्ट का बिजली का करेंट लग गया था, जिसमे उन्होंने अपने दोनों हाथ खो दिए। चंदीप सिंह सूदन ने उस समय कभी सोचा नहीं था वह दस साल बाद चलने और दौड़ने में सक्षम होंगे। स्केट उनके लिए एक त्रासदी की तरह लग रहा था, लेकिन आज स्केटिंग उनके लिए एक जीने का तरीका बन गया है।
आज, वह एक राष्ट्रीय स्तर के स्केटर है और 13.9 सेकंड के प्रभावशाली प्रदर्शन के साथ सबसे तेज़ 100 मीटर पैरा-स्केटिंग करने का विश्व रिकॉर्ड बनाया है। बचपन में अपने हाथ खोने के बाद उनके सामने उथल-पुथल की स्थिति थी, लेकिन चुनौतियों से ऊपर उठने के उनके संकल्प ने सभी बाधाओं को झुका दिया।
पड़ोस के अधिकांश बच्चों की तरह, छोटे चंदीप की भी हमेशा से खेल में रुचि रखते थे। इस बात को कोई नहीं नहीं जानता था कि एक दिन चंदीप अपने दृढ़ संकल्प और मेहनत के दम पर किसी खेल को खेल पायेंगे। यह शायद किसी को पता होगा कि एक दिन अपनी स्केटिंग कौशल के जरिये वह अपनी इस विकलांगता से उबरने के लिए जाने जायेगें। चंदीप सिंह पैरा ताइक्वांडो में भी माहिर है।
चंदीप इस बारें में कहते हैं, “हाथ खोने से पहले, मैं खेल में बहुत सक्रिय था। मैं कई स्कूल प्रतियोगिताओं में भाग लेता था, जिनमें फुटबॉल और एथलेटिक्स जैसे खेल शामिल होते थे। लेकिन अपनी दोनों बाहें खोने के बाद, मैंने अन्य खेलों को खेलने कि तलाश शुरू कर दी। 2011 में मैंने कैसे स्केटिंग शुरू की।"
दोनों हाथ खोने के बाद चंदीप अपनी दुनिया को टुकड़ों में बिखरते हुए देखा। वह बताते हैं कि जब उन्हें पता चला कि उन्होंने अपनी बाहें खो दी तो वह बहुत रोये। वह हमेशा दुखी रहते थे लेकिन उनके परिवार वाले हमेशा कहते रहते थे कि जो हो चुका उसके बारे में मत सोचों आगे जो करना है उसके बारें में सोचों।
जब सारी आशा खो गई, तो चंदीप के परिवार ने उसे सक्रिय रखने की ठानी। इस बारें में चंदीप बताते हैं, “मेरा परिवार मेरी ताकत रहा है। वे मुझे प्रोत्साहित करते रहे, उन्होंने कहा कि परिवार वाले हमेशा मेरा हौसला बढ़ाते रहे। वे मुझे कहते थे चाहे जो कुछ हो जाए मेरी भलाई के लिए वह सब कुछ करेंगे। मुझसे कहा गया कि मैं अपने जीवन में वह सब करूं जो मैं करना चाहता हूं। मुझे पूरा समर्थन था। मेरे परिवार के अलावा, ऐसे दोस्त थे जिन्होंने मुझे कभी महसूस नहीं कराया कि मैंने जीवन में कुछ भी खोया है।”
हालाँकि, एस्पायरिंग इलेक्ट्रिकल इंजीनियर चंदीप के लिए यह स्केटिंग करने का सफ़र इतना आसान नहीं रहा। जब उन्होंने स्केटिंग शुरू की तो उनके पास मुश्किल फैसलों की भरमार थी। बिना बाहों के स्केटिंग पर संतुलन सीखना आसान नहीं था। स्केटिंग करते समय सड़क पर वह शुरुआत में नीचे गिर जाते थे। लेकिन घंटों अभ्यास और प्रशिक्षण के साथ, उन्हें इसकी आदत हो गई। अब यह उनके लिए बहुत आसान लगता है।
चंदीप ने तमाम परेशानियों के बावजूद कभी हार न मानने की मानसिकता विकसित की। उनके इस सफर में उनके परिवार और दोस्तों की बड़ी भूमिका थी। जब उनसे पूछा जाता है कि उन्हें यह करने की प्रेरणा कहा से मिली तो वह बताते हैं कि परिवार और दोस्तों की उनसे उम्मीद उन्हें हमेशा मेहनत करते रहने में मदद की। इसके अलावा उन्होंने मिल्खा सिंह से मिली। मिल्खा सिंह ने उन्हें मानसिक और आर्थिक रूप से मजबूत होने में मदद की।
चंदीप सिंह का खेल के प्रति दीवानगी इस कदर है कि ताइक्वांडो भी सीखा। उन्होंने दक्षिण कोरिया में किम्योंग कप ताइक्वांडो चैम्पियनशिप प्रतियोगिता में देश के लिए दो स्वर्ण पदक जीते हैं। इसके अलावा, उन्होंने वियतनाम में एशियाई ताइक्वांडो चैम्पियनशिप और नेपाल में अंतर्राष्ट्रीय ताइक्वांडो चैम्पियनशिप में दो-दो स्वर्ण पदक जीते हैं।
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चंदीप सिंह की कहानी सिर्फ एक एथलीट की नहीं है जो विजेता बनने के लिए सभी बाधाओं के खिलाफ लड़ रहा है। यह एक सामान्य मानव के सफल होने की कहानी है, जो अपनी कमियों के बावजूद जीने की वह कला सीख लेता है और उसके लिए कोशिश करता है और सफल भी होता है। उनकी कहानी कभी हार न मानने की कहानी है। उनसे हमें प्रेरणा मिलती है कि ज़िन्दगी में कुछ भी हो जाए कभी भी हार मत मानो!